ई-रिटेल और ई-कॉमर्स का बाज़ार पर दबदबे की सामाजिक कीमत

अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि किसान की आजीविका के लिए खेत पर होने वाली गतिविधियों से ज्यादा खेत के बाहर होने वाली गतिविधियां अधिक मायने रखती हैं । भले ही किसी को पसंद हो या नहीं, जब निजी क्षेत्र अच्छा करता है, तभी अर्थव्यवस्था फलती-फूलती है और हर माह लाखों रोजगार पैदा होते हैं। उपभोक्ताओं के पास भुगतान करने के लिए अधिक पैसा होता है, तभी वह पौष्टिक भोजन के लिए पैसे खर्च कर सकते हैं और तभी किसान को अपनी उपज का बेहतर मूल्य मिल सकता है

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खाद्य प्रणाली में ताकत का असंतुलन

पर्यावरण के मुद्दों का अध्ययन करने वाले विद्वान अक्सर जलवायु परिवर्तन और ग्रीनहाउस उत्सर्जन के लिए किसानों को ही दोषी ठहराते हैं। जबकि किसान पूरी इमानदारी से प्राकृतिक संसाधनों और मिट्टी का सही प्रंबधन करते हैं ताकि प्राकृति का ज्यादा नुकसान ना हो। असल में किसान कोई ऐसी पद्धति अपनाता है जो टिकाऊ नहीं उसके लिए नई तकनीक और अनुसंधान है जो एक खास रिसर्च सिस्टम के जरिये आए हैं और इनमें निजी क्षेत्र की भी भूमिका है। लेकिन यह बात कोई भी आपको नहीं बताता है।

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खाद्य प्रणाली में संतुलन

भारत की सुनीता और  नाइजीरिया की अबीके  मक्का  और गेहूं  उगाने वाले  छोटे किसान हैं । दुनिया में बढ़ती खाद्यान्न की मांग और बढ़ती उपभोक्ता कीमतों के बावजूद, दोनों ने शायद ही कभी अधिक आय अर्जित की है। यह हकीकत केवल इन देशों की नही है बल्कि इंडोनेशिया, पाकिस्तान, नाइजीरिया ,बंग्लादेश, मेक्सिको  जैसे 10 देशों में जहां अधिकतर परिवारों  की आजीविका कृषि पर निर्भर है, वहां उत्पादन लागत  बढ़ने  के कारण किसानों के मुनाफे का दायरा सिकुड़ता जा रहा है।  इस चरमराती हुई खाद्य व्यवस्था के कारण इन परिवारों के खर्च ज्यादा बढ़ गये जिसके कारण यह परिवार अधिक गरीबी में जीने के लिए मजबूर हैं । इसका सबसे बडा प्रभाव यह है कि आज बडी संख्या मे लोग अपने खेत- खलिहानों को छोडकर गांव से शहरों और विदेशों की ओर पलायन कर रहे हैं।

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